शनिवार, 11 जून 2011

जोगिया से प्रीत




पुकारता रहा हृदय, पुकारते रहे नयन





मगर निठुर न तुम रुके, मगर निठुर न तुम रुके!
पुकारता रहा हृदय, पुकारते रहे नयन,
पुकारती रही सुहाग दीप की किरन-किरन,
निशा-दिशा, मिलन-विरह विदग्ध टेरते रहे...

मगर निठुर न तुम रुके!

गोपालदास "नीरज"

गुरुवार, 9 जून 2011

सोमवार, 6 जून 2011

गुरुवार, 2 जून 2011